पंच मोहत्सव पर्व दीपावली Diwali ka mahatwa aur Diwali pujan vidhi
पंच महोत्सव पर्व दीपावली.
राष्ट्रीय एकता और सद्भावना का पर्व दीपावली है | सभी वर्णो के लोग दीपावली पर्व बड़े उल्लास से मानते है|
भारत की एकता और सद्भावन् का पर्व हे दीपावली I सभी वर्णो के लोग बडी उत्साहा के साथ मनाता हे I दीपावली का पर्व पॅंच महोत्सव का रूप मे मऩाया जाता है I हिन्दू पर्व के सर्वोपरि महोत्सव दीपावली को विधीपुर्वक मनाने वाले सदा सुखी रहते है I यह पन्च महोत्सव इस प्रकार मनाया जाता है : ---
1. धनतेरस
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ला ~व्दितीय तक पाँच दिन तक दीपावली का क्र्म प्रारम्भ होता है I धनतेरस के दिन घर से बाहर यमराज के लिए दीपदान देना चाहिए इस से अकाल मृत्यु का भय नही रहता I दीप दान के समय यह . श्लोक जपना :-
मृत्यूना पाशहस्तेन कालेन भर्यापा सह I
त्र्योद्श्याम दिपदाना सुर्यज: प्रीचतमिवि II
धनत्रयोदशी - पूजन-विधि
सर्वप्रथम भगवान् धन्वन्तरि का चित्र चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर स्थापित करें । साथ ही भगवान् गणपति की स्थापना धन्वन्तरि के समक्ष अक्षत से बने हुए स्वस्तिक या अष्टदल के केन्द्र में सुपारी पर मौली लपेटकर करें ।
सर्वप्रथम अपनें ऊपर तथा पूजन सामग्री पर जल छिड़ककर पवित्र करे । तदुपरान्त भगवान् गणपति का पूजन करें । उनके समक्ष अर्घ्य , आचमन एवं स्नान हेतु थोड़ा -सा जल छोड़ें । तदुपरान्त रोली का टीका लगाएँ । अक्षता लगाएँ । वस्त्र के रूप में मौली का एक टुकड़ा चढ़ाएँ । पुष्प चढ़ाएँ । नैवेद्य चढ़ाएँ और अन्त में नमस्कार करें
देवान् कृशानसुरसंघनिपीडिताङ्गान्
दृष्ट्वा दयालुरमृतं विपरीतुकामः ।
पाथोधिमन्थनविधौ प्रकटोऽभवद्यो धन्वन्तरिः स भगवानवतात् सदा नः ॥
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ धन्वन्तरिदेवाय नमः ।
धनत्रयोदशी - यम-दीपदान
यमदेवता भगवान् सूर्य के पुत्र हैं । उनकी माता का नाम संज्ञा है । वैवस्वत मनु , अश्विनीकुमार एवं रैवंत उनके भाई हैं तथा यमुना उनकी बहिन है । उनकी सौतेली माँ छाया से शनि , तपती , विष्टि , सावर्णि मनु आदि १० सन्तानें हुई हैं , जो कि उनके सौतेले भाई -बहिन भी है । वैसे यम शनि ग्रह के अधिदेवता माने जाते हैं ।
स्कन्दपुराण में कहा गया है कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में त्रयोदशी के प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य समर्पित करने पर अपमृत्यु अर्थात् अकाल मृत्यु का नाश होता है । ऐसा स्वयं यमराज ने कहा था ।मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियॉं बना लें । उन्हें दीपक में एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें । अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें । उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी -सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है । दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्मलिखित मन्त्र का उच्चारण करते
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह । त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।
अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु , पाश , दण्ड , काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों
2. नरक चतुर्दशी
प्रात:काल सुर्योदय से पूर्व उठकर लौकि को अपने सिर से घुमाने के बाद स्नान करे I इस प्रकार करने से नरक का भय नही रहता है I और इस श्लोक का उच्चारण करे :-
सीता लोष्ट सहायुक्त: स्ंकष्ट: दलान्वित: I
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण पुन: पुन: II
भगवान ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से इस दिन तीन पग ज़मीन ली थी I तत्पश्चात भगवान ने राजा को वरदान दिया कि जो इस दिन दीप दान करेगा लक्ष्मी उस के घर मे सदा निवास करेंगी I
3. दीपावली : लक्ष्मी पूजन
स्कन्द पुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या को प्रात:काल स्नान करना चाहिए दूध , दही,शहद,घी, शक्कर से पवित्र प्रसाद बनाना चाहिए I सायकाल को लक्ष्मी पूजन विधि के साथ करने से धन प्राप्ति होती है I
शुभं करोति कल्याणम आरोग्यं धन संपादम I
शत्रु वृद्धि विनाशय: दीप ज्योति नमो स्तुते II
दीपावली का अर्थ दीप पुंज प्रकाशित करना है I अंधकार को हरना है श्री कृष्ण भगवान इसी दिन शरीर मुक्त हुए और इसी दिन श्री राम वनवास ख़तम कर का वापस आया थे I यह त्यौहार विजय का प्रतिक है भगवान महावीर ने इसी दिन निर्वाण प्राप्त किया I महर्षि द्यानंद सरस्वती ने निर्वाण प्राप्त किया था I
लक्ष्मी पूजन हेतु सामग्री
रोली , मौली , पान , सुपारी , अक्षत ( साबुत चावल ), धूप , घी का दीपक , तेल का दीपक , खील , बतासे , श्रीयंत्र , शंख ( दक्षिणावर्ती हो , तो उत्तम ), घंटी , घिसा हुआ चन्दन , जलपात्र , कलश , पाना ( लक्ष्मी , गणेश एवं सरस्वती का संयुक्त चित्र ), दूध , दही , शहद , शर्करा , घृत , गंगाजल , सिन्दूर , नैवेद्य , इत्र , यज्ञोपवीत , श्वेतार्क के पुष्प , कमल का पुष्प , वस्त्र , कुंकुम , पुष्पमाला , ऋतुफल , कर्पूर , नारियल , इलायची , दूर्वा , एकाक्षी नारियल , चॉंदी का वर्क इत्यादि ।
पूजन सामग्री की सूची:-
* धूप बत्ती (अगरबत्ती)
* चंदन
* कपूर
* केसर
* यज्ञोपवीत 5
* कुंकु
* चावल
* अबीर
* गुलाल, अभ्रक
* हल्दी
* सौभाग्य द्रव्य- (मेहँदी * चूड़ी, काजल, पायजेब,बिछुड़ी आदि आभूषण)
* नाड़ा
* रुई
* रोली, सिंदूर
* सुपारी, पान के पत्ते
* पुष्पमाला, कमलगट्टे
* धनिया खड़ा
* सप्तमृत्तिका
* सप्तधान्य
* कुशा व दूर्वा
* पंच मेवा
* गंगाजल
* शहद (मधु)
* शकर
* घृत (शुद्ध घी)
* दही
* दूध
* ऋतुफल (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि)
* नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि)
* इलायची (छोटी)
* लौंग
* मौली
* इत्र की शीशी
* तुलसी दल
* सिंहासन (चौकी, आसन)
* पंच पल्लव (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते)
* औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि)
* लक्ष्मीजी का पाना (अथवा मूर्ति)
* गणेशजी की मूर्ति
* सरस्वती का चित्र
* चाँदी का सिक्का
* लक्ष्मीजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र
* गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र
* अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र
* जल कलश (ताँबे या मिट्टी का)
* सफेद कपड़ा (आधा मीटर)
* लाल कपड़ा (आधा मीटर)
* पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)
* दीपक
* बड़े दीपक के लिए तेल
* ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा)
* श्रीफल (नारियल)
* धान्य (चावल, गेहूँ)
* लेखनी (कलम)
* बही-खाता, स्याही की दवात
* तुला (तराजू)
* पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल)
* एक नई थैली में हल्दी की गाँठ,
* खड़ा धनिया व दूर्वा आदि
* खील-बताशे
पूजन विधि
सर्वप्रथम लक्ष्मी -गणेश के पाने ( चित्र ), श्रीयन्त्र आदि को जल से पवित्र करके लाल वस्त्र से आच्छादित चौकी पर स्थापित करें । लाल कम्बल या ऊन के आसन को बिछाकर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख बैठें । पूजन सामग्री निम्नलिखित प्रकार से रखें :
बायीं ओर :
१ . जल से भरा हुआ पात्र , २ . घंटी , ३ . धूपदान , ४ . तेल का दीपक ।
दायीं ओर :
१ . घृत का दीपक , २ . जल से भरा शंख ( दक्षिणावर्ती शंख हो , तो उत्तम ) ।
सामने :
१ . घिसा हुआ चन्दन , २ . रोली , ३ . मौली , ४ . पुष्प , ५ . अक्षत आदि ।
भगवान के सामने : चौकी पर नैवेद्य ।
सर्वप्रथम निम्नलिखित मन्त्र से अपने ऊपर तथा पूजन सामग्री के ऊपर जल छिडकें :
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
अब चौकी के दायीं ओर घी का दीपक प्रज्वलित करें ।
द्विजटश्चैकनेत्रस्तु नारिकेलो महीतले ।
चिन्तामणि -सम : प्रोक्तो वांछितार्थप्रदानतः ॥
आधिभूतादि -व्याधीनां रोगादि -भयहारिणीं । विधिवत क्रियते पूजा , सम्पत्ति -सिद्धिदायकम ॥
हाथ में लिए अक्षतों को एकाक्षी नारियल पर चढा दें । अब एकाक्षी नारियल का पूजन निम्न प्रकार से करें :
तीन बार जल के छींटे दें और बोलें : पाद्यं , अर्घ्यं , आचमनीयं समर्पयामि ।
स्नानं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर जल के छींटे दें ।
पंचामृत स्नानं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर पंचामृत के छींटे दें ।
पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल को शुद्ध जल से स्नान कराए ।
सिन्दूरं समर्पयामि । घी मिश्रित सिन्दूर का लेप करें और वर्क चढाए ।
सुवासितं इत्रं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर इत्र चढाए ।
वस्त्रं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर मौली चढाए ।
गन्धं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर रोली अथवा लाल चन्दन चढाए ।
अक्षतान समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर चावल चढाए ।
पुष्पं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर पुष्प चढाए ।
धूपम आघ्रापयामि । एकाक्षी नारियल पर धूप करें ।
दीपकं दर्शयामि । एकाक्षी नारियल को दीपक दिखाए ।
नैवेद्यं निवेदयामि । एकाक्षी नारियल पर प्रसाद चढाए ।
आचमनं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर जल के छींटे दें ।
ऋतुफलं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर ऋतुफल चढाए ।
ताम्बूलं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर पान , सुपारी , इलायची आदि चढाए ।
दक्षिणां समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर नकदी चढाए ।
कर्पूरनीराजनं समर्पयामि । कर्पूर से आरती करें ।
नमस्कारं समर्पयामि । नमस्कार करें ।
अन्त में निम्नलिखित मन्त्र से हाथ जोडकर प्रार्थना करें :
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं महालक्ष्मीस्वरुपाय एकाक्षिनारिकेलाय नमः सर्वसिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ॥
कुबेर पूजन
आवाहयामि देव त्वामिहायामि कृपां कुरु ।
कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर ॥
अब हाथ में अक्षत लेकर निम्नलिखित मंत्र से कुबेरजी का ध्यान करे ।
मनुजवाह्यविमानवरस्थितं ,
गरुड़रत्ननिभं निधिनायकम् ।
शिवसखं मुकुटादिविभूषितं ,
वरगदे दधतं भज तुन्दिलम् ॥
हाथ में लिए हुए अक्षतों को कुबेरयंत्र , चित्र या विग्रह के समक्ष चढ़ा दें ।
अब कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह का पूजन निम्नलिखित प्रकार से करे ।
तीन बार जल के छीटे दें और बोलेः पाद्यं , अर्घ्यं , आचमनीयं समर्पयामि ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , स्थानार्थे जलं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर जल के छीटें दें ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , पंचामृतस्नानार्थे पंचामृतं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह को पंचामृत से स्नान कराएँ ।
पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह को शुद्ध जल से स्नान कराएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , सुवासितम् इत्रं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर इत्र चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , वस्त्रं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर मौली चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , गन्धं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर रोली अथवा लाल चन्दन चढ़ाएँ ।
ॐवैश्रवणाय नमः , अक्षतान् समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर चावल चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , पुष्पं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर पुष्प चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , धूपम् आघ्रापयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर धूप करें ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , दीपकं दर्शयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह को दीपक दिखाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , नैवेद्यं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर प्रसाद चढ़ाएँ ।
आचमनं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर जल के छीटे दें ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , ऋतुफलं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर पान , सुपारी , इलायची आदि चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , कर्पूरनीराजनं समर्पयामि ।
कर्पूर जलाकर आरती करें ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , नमस्कारं समर्पयामि ।
नमस्कार करें ।
अंत में इस मंत्र से हाथ जोड़कर प्रार्थना करेः
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपायं च ।
भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥
4. अन्न कूट : गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा का उत्सव मथुरा,वृंदावन,काशी मे धूमधाम से मनाया जाता है इस दिन इन्द्र पूजा का विधान है I श्री कृष्णा ने गोवर्धन की पूजा करवाई थी और इंद्र ने हार मान कर कृष्णा की शरण ली थी Iकई हजारों साल पहले, भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा कर बृज के लोगों का उद्धार किया था।यही कारण है कि तब से, हर साल हिन्दू गोवर्धन पूजा कर के इस दिन को उत्सव के रूप में मनाते हैं।
5. भैया दूज
यह पर्व सुखद अनुभूति का पर्व है इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाता है I एसा करने से वह धन धन्य से परिपूर्ण रहता है पंच पर्व मनाने से हम अंधकार से प्रकाश की ओर जाते है Iदीवाली के पांचवें दिन को भाई दूज कहा जाता है। सामान्य रूप से यह दिन भाई बहनों को ही समर्पित होता है। यह मान्यता है कि वैदिक युग में मृत्यु के देवता यम ने इस दिन अपनी बहन यमुना के घर जाकर उनसे तिलक करवा कर उन्हे मोक्ष का वरदान दिया था। उसा प्रकार भाई इस दिन बहन के घर जाते हैं और बहनें टीका कर भाई की सुख समृद्धि की मंगल कामना करती हैं। भाई इस दिन बहनों को भेंट स्वरूप कुछ उपहार देते हैं। भाई उपहार के रूप में फेंग शुई गिफ्ट दे सकते हैं जो दिखने में भी आकर्षक होंगे और बहन के लिए सुख समृद्धि ले कर आएंगे। बहनें बगला मुखी यंत्र भाई को उपहार स्वरूप दे सकती हैं, जो सभी बुरी नज़र से भाई की रक्षा करेगा।
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